श्री देवी माँ के दिव्य 52 शक्तिपीठ दर्शन

Mahakali
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य। प्रसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।
इस प्रकार भगवती से प्रार्थना कर भगवती के शरणागत हो जाएं। देवी कई जन्मों के पापों का संहार कर भक्त को तार देती है। वही जननी सृष्टि की आदि, अंत और मध्य है।
nalteshwarimaa
देवी से प्रार्थना करें: शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे! सर्वस्यार्तिंहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तुते॥
Nalhatti-Shakti-Peeth
सर्वकल्याण एवं शुभार्थ प्रभावशाली माना गया हैः सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके। शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
marikambadewi
बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिएः सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥
Dhari_Devi
सर्वबाधा शांति के लिएः सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।maakatyani
आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के लिए इस चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया हैः देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
maa_kamala
अर्थातः शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब की पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। देवी से प्रार्थना कर अपने रोग, अंदरूनी बीमारी को ठीक करने की प्रार्थना भी करें। ये भगवती आपके रोग को हरकर आपको स्वस्थ कर देंगी।
maa_bagalamukhi
विपत्ति नाश के लिएः शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे। सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥
अर्थातः शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवी हम पर प्रसन्न होओ। संपूर्ण जगत माता प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरी! विश्व की रक्षा करो। देवी! तुम्ही चराचर जगत की अधिश्वरी हो।
Maa Bamleshwari
मोक्ष प्राप्ति के लिएः त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया।। सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्। त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्त हेतु:।।
Ma_Vindhyavasini
शक्ति प्राप्ति के लिएः सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोह्यस्तु ते।।

अर्थातः तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।
lalita_devi
रक्षा का मंत्रः शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।

अर्थातः देवी! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।
Kirit-Shakti-Peeth
रोग नाश का मंत्रः रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।

अर्थातः देवी! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।

Vishalakshi Manikarnika
Vishalakshi Manikarnika

दु:ख-दारिद्र नाश के लिएः दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:। स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।। द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या। सर्वोपकारकारणाय सदाह्यद्र्रचिता।।
ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय मुक्ति-मोक्ष के लिएः ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः। शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥
भय नाशक दुर्गा मंत्रः सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते, भयेभ्यास्त्रहिनो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते।
maasurya-mata
स्वप्न में कार्य सिद्घि-असिद्घि जानने के लिएः दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके। मम सिद्घिमसिद्घिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय।।

keladevi
मां के कल्याणकारी स्वरूप का वर्णनः सृष्टिस्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तुते॥
अर्थातः हे देवी नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणी! तुम्हें नमस्कार है। इस प्रकार देवी उनकी शरण में जाने वालों को इतनी शक्ति प्रदान कर देती है कि उस मनुष्य की शरण में दूसरे लोग आने लग जाते हैं। देवी धर्म के विरोधी दैत्यों का नाश करने वाली है। देवताओं की रक्षा के लिए देवी ने दैत्यों का वध किया। वह आपके आतंरिक एवं बाह्य शत्रुओं का नाश करके आपकी रक्षा करेगी। आप बारंबार उसकी शरणागत हो एवं स्वरमय प्रार्थना करें।
हे सर्वेश्वरी! तुम तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो। पुन: भगवती के शरणागत जाकर भगवती चरित्र को पढ़ने, उनका गुणगान करने मात्र से सर्वबाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्र से संपन्न होंगे। इसमें तनिक भी संदेह नहीं। भगवती के प्रादुर्भाव क‍ी सुंदर गाथाएं सुनकर मनुष्य निर्भय हो जाता है। मुझे अनुभव है कि भगवती के माहात्म्य को सुनने वाले पुरुष के सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं। उन्हें कल्याण की प्राप्ति होती है तथा उनका कुल आनंदित रहता है। स्वयं भगवती का वचन है कि मेरी शरण में आया हर व्यक्ति दु:ख से परे हो जाता है। यदि आप संगणित है तथा और आपके बीच दूरियां हो गई हैं तो आप पुन: संगठित हो जाएंगे। बालक अशांत है तो शांतिमय जीवन हो जाएगा।
GoddessTara
श्लोकः नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततंनम:। नम: प्रकृत्यै भद्राये नियता: प्रणता: स्मताम्।
अर्थातः देवी को नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है। हम लोग नियमपूर्वक जगदंबा को नमस्कार करते हैं। शैद्रा को नमस्कार है। नित्या गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है। ज्योत्सनामयी चंद्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है। इस प्रकार देवी दुर्गा का स्मरण कर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती है। देवी मां दुर्गा अपनी शरण में आए हर शरणार्थी की रक्षा कर उसका उत्थान करती है। देवी की शरण में जाकर देवी से प्रार्थना करें, जिस देवी की स्वयं देवता प्रार्थना करते हैं। वह भगवती शरणागत को आशीर्वाद प्रदान करती है।
mansa-maa
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे, वहां वहां शक्ति पीठ बन गईं। ये अत्यंय पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।
नवरात्री महापर्व पर इन शक्तिपीठो पर करोंड़ो श्रद्धालु दर्शन आराधना करते हे इस अवसर पर मेले आयोजित भी होते हेimage
ॐॐॐ यद् गुह्यं परमं लोके, सर्व-रक्षा-करं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं, तन्मे ब्रूहि पितामह।।1
maavindhyawasini
ॐ अस्ति गुह्य-तमं विप्र सर्व-भूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं, तच्छृणुष्व महामुने।।2
maavankhandi
प्रथमं शैल-पुत्रीति, द्वितीयं ब्रह्म-चारिणी।
तृतीयं चण्ड-घण्टेति, कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।3
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पंचमं स्कन्द-मातेति, षष्ठं कात्यायनी तथा।
सप्तमं काल-रात्रीति, महागौरीति चाष्टमम्।।4
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नवमं सिद्धि-दात्रीति, नवदुर्गा: प्रकीर्त्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि, ब्रह्मणैव महात्मना।।5
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अग्निना दह्य-मानास्तु, शत्रु-मध्य-गता रणे।
विषमे दुर्गमे वाऽपि, भयार्ता: शरणं गता।।6
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न तेषां जायते किंचिदशुभं रण-संकटे।
आपदं न च पश्यन्ति, शोक-दु:ख-भयं नहि।।7
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यैस्तु भक्त्या स्मृता नित्यं, तेषां वृद्धि: प्रजायते।
प्रेत संस्था तु चामुण्डा, वाराही महिषासना।।8
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ऐन्द्री गज-समारूढ़ा, वैष्णवी गरूड़ासना।
नारसिंही महा-वीर्या, शिव-दूती महाबला।।9
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माहेश्वरी वृषारूढ़ा, कौमारी शिखि-वाहना।
ब्राह्मी हंस-समारूढ़ा, सर्वाभरण-भूषिता।।10
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लक्ष्मी: पद्मासना देवी, पद्म-हस्ता हरिप्रिया।
श्वेत-रूप-धरा देवी, ईश्वरी वृष वाहना।।11
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इत्येता मातर: सर्वा:, सर्व-योग-समन्विता।
नानाभरण-षोभाढया, नाना-रत्नोप-शोभिता:।।12
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श्रेष्ठैष्च मौक्तिकै: सर्वा, दिव्य-हार-प्रलम्बिभि:।
इन्द्र-नीलैर्महा-नीलै, पद्म-रागै: सुशोभने:।।13
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दृष्यन्ते रथमारूढा, देव्य: क्रोध-समाकुला:।
शंखं चक्रं गदां शक्तिं, हलं च मूषलायुधम्।।14
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खेटकं तोमरं चैव, परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं च खड्गं च, शार्गांयुधमनुत्तमम्।।15
Mahalaxmiदैत्यानां देह नाशाय, भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं, देवानां च हिताय वै।।16
lalita_deviनमस्तेऽस्तु महारौद्रे ! महाघोर पराक्रमे !
महाबले ! महोत्साहे ! महाभय विनाशिनि।।17
kunjapuradeviत्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये ! शत्रूणां भयविर्द्धनि !
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री, आग्नेय्यामग्नि देवता।।18
komarideviदक्षिणे चैव वाराही, नैऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारूणी रक्षेद्, वायव्यां वायुदेवता।।19
kolhapurउदीच्यां दिशि कौबेरी, ऐशान्यां शूल-धारिणी।
ऊर्ध्वं ब्राह्मी च मां रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।।20
Kirit-Shakti-Peethएवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शव-वाहना।
जया मामग्रत: पातु, विजया पातु पृष्ठत:।।21
keladeviअजिता वाम पार्श्वे तु, दक्षिणे चापराजिता।
शिखां मे द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।।22

Vishalakshi Manikarnika
Vishalakshi Manikarnika

मालाधरी ललाटे च, भ्रुवोर्मध्ये यशस्विनी।
नेत्रायोश्चित्र-नेत्रा च, यमघण्टा तु पार्श्वके।।23
Katyayani-Peethशंखिनी चक्षुषोर्मध्ये, श्रोत्रयोर्द्वार-वासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्, कर्ण-मूले च शंकरी।।24
kashishaktipeethनासिकायां सुगन्धा च, उत्तरौष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृत-कला, जिह्वायां च सरस्वती।।25
karni mataदन्तान् रक्षतु कौमारी, कण्ठ-मध्ये तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्र-घण्टा च, महामाया च तालुके।।26
Dadhimati-Maaकामाख्यां चिबुकं रक्षेद्, वाचं मे सर्व-मंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च, पृष्ठ-वंशे धनुर्द्धरी।।27
chintpurni1नील-ग्रीवा बहि:-कण्ठे, नलिकां नल-कूबरी।
स्कन्धयो: खडि्गनी रक्षेद्, बाहू मे वज्र-धारिणी।।28
Chintpurniहस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदिम्बका चांगुलीषु च।
नखान् सुरेश्वरी रक्षेत्, कुक्षौ रक्षेन्नरेश्वरी।।29
chandrahasiniस्तनौ रक्षेन्महादेवी, मन:-शोक-विनाशिनी।
हृदये ललिता देवी, उदरे शूल-धारिणी।।30
bhawanipeethनाभौ च कामिनी रक्षेद्, गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
मेढ्रं रक्षतु दुर्गन्धा, पायुं मे गुह्य-वासिनी।।31
bhawaniकट्यां भगवती रक्षेदूरू मे घन-वासिनी।
जंगे महाबला रक्षेज्जानू माधव नायिका।।32
Bahula-Shakti-Peethगुल्फयोर्नारसिंही च, पाद-पृष्ठे च कौशिकी।
पादांगुली: श्रीधरी च, तलं पाताल-वासिनी।।33
Kamakshi-Amman-Templeनखान् दंष्ट्रा कराली च, केशांश्वोर्ध्व-केशिनी।
रोम-कूपानि कौमारी, त्वचं योगेश्वरी तथा।।34
kamakhya1रक्तं मांसं वसां मज्जामस्थि मेदश्च पार्वती।
अन्त्राणि काल-रात्रि च, पितं च मुकुटेश्वरी।।35
kamakhyaपद्मावती पद्म-कोषे, कक्षे चूडा-मणिस्तथा।
ज्वाला-मुखी नख-ज्वालामभेद्या सर्व-सन्धिषु।।36
kalkajiशुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं, रक्षेन्मे धर्म-धारिणी।।37
kalbukodeviप्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्र-हस्ता तु मे रक्षेत्, प्राणान् कल्याण-शोभना।।38
jeenmataरसे रूपे च गन्धे च, शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्वं रजस्तमश्चैव, रक्षेन्नारायणी सदा।।39
Janasthan-Shakti-Peethआयू रक्षतु वाराही, धर्मं रक्षन्तु मातर:।
यश: कीर्तिं च लक्ष्मीं च, सदा रक्षतु वैष्णवी।।40
jaimaataगोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्, पशून् रक्षेच्च चण्डिका।
पुत्रान् रक्षेन्महा-लक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।।41
adhyashaktiधनं धनेश्वरी रक्षेत्, कौमारी कन्यकां तथा।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमंकरी तथा।।42
adhardevi2
राजद्वारे महा-लक्ष्मी, विजया सर्वत: स्थिता।
रक्षेन्मे सर्व-गात्राणि, दुर्गा दुर्गाप-हारिणी।।43
Bahula-Shakti-Peeth
रक्षा-हीनं तु यत् स्थानं, वर्जितं कवचेन च।
सर्वं रक्षतु मे देवी, जयन्ती पाप-नाशिनी।।44
Dadhimati-Maa
।।फल-श्रुति।।
सर्वरक्षाकरं पुण्यं, कवचं सर्वदा जपेत्।
इदं रहस्यं विप्रर्षे ! भक्त्या तव मयोदितम्।।45
Dhari_Devi
देव्यास्तु कवचेनैवमरक्षित-तनु: सुधी:।
पदमेकं न गच्छेत् तु, यदीच्छेच्छुभमात्मन:।।46
gayatri
कवचेनावृतो नित्यं, यत्र यत्रैव गच्छति।
तत्र तत्रार्थ-लाभ: स्याद्, विजय: सार्व-कालिक:।।47
Godavari-Temple
यं यं चिन्तयते कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्नोत्यविकल: पुमान्।।48
Goddess_Saraswati
निर्भयो जायते मर्त्य:, संग्रामेष्वपराजित:।
त्रैलोक्ये च भवेत् पूज्य:, कवचेनावृत: पुमान्।।49
GoddessTara
इदं तु देव्या: कवचं, देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत् प्रयतो नित्यं, त्रि-सन्ध्यं श्रद्धयान्वित:।।50
Guhyeshwari_Temple
देवी वश्या भवेत् तस्य, त्रैलोक्ये चापराजित:।
जीवेद् वर्ष-शतं साग्रमप-मृत्यु-विवर्जित:।।51
Jalandhar-Shakti-Peeth
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे, लूता-विस्फोटकादय:।
स्थावरं जंगमं वापि, कृत्रिमं वापि यद् विषम्।।52
maa_bagalamukhi
अभिचाराणि सर्वाणि, मन्त्र-यन्त्राणि भू-तले।
भूचरा: खेचराश्चैव, कुलजाश्चोपदेशजा:।।53
maa_bhuvaneshvari
सहजा: कुलिका नागा, डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरीक्ष-चरा घोरा, डाकिन्यश्च महा-रवा:।।54
Maa_Chauharjan_(Barahi)_Devi
ग्रह-भूत-पिशाचाश्च, यक्ष-गन्धर्व-राक्षसा:।
ब्रह्म-राक्षस-वेताला:, कूष्माण्डा भैरवादय:।।55
maa_kamala
नष्यन्ति दर्शनात् तस्य, कवचेनावृता हि य:।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजो-वृद्धि: परा भवेत्।।56

Maa Avantika
Maa Avantika

यशो-वृद्धिर्भवेद् पुंसां, कीर्ति-वृद्धिश्च जायते।
तस्माज्जपेत् सदा भक्तया, कवचं कामदं मुने।।57
maakali
जपेत् सप्तशतीं चण्डीं, कृत्वा तु कवचं पुर:।
निर्विघ्नेन भवेत् सिद्धिश्चण्डी-जप-समुद्भवा।।58
maakatyani
यावद् भू-मण्डलं धत्ते ! स-शैल-वन-काननम्।
तावत् तिष्ठति मेदिन्यां, जप-कर्तुर्हि सन्तति:।।59
maa-peetambara
देहान्ते परमं स्थानं, यत् सुरैरपि दुर्लभम्।
सम्प्राप्नोति मनुष्योऽसौ, महा-माया-प्रसादत:।।60
Nandipur-Shakti-Peeth
तत्र गच्छति भक्तोऽसौ, पुनरागमनं न हि।
लभते परमं स्थानं, शिवेन सह मोदते ॐॐॐ।।61