श्री दुर्गा सप्तशती तथा दस महा विद्या के दुर्लभ अद्भुत दिव्य सिद्ध मन्त्र बीज मन्त्र सहीत

श्री गणेशाय नमः

ॐ नमश्चण्डिकायै

श्री  सिद्ध कुंजिका स्तोत्र मंत्र :-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।

ॐ  ऐं श्रीं नमः   दुर्गे  स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥4.17॥

ॐ ऐं ह्रीं नमः नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणता स्मरताम। ॥5.9॥

ॐ ऐं क्रूम  नमः  देव्या हते तत्र महासुरेन्द्रे
सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्ताम्।
कात्यायनीं तुष्टुवुरिष्टलाभाद्
विकाशिवक्त्राब्जविकाशिताशाः॥11.2॥

ॐ  ऐं श्रीं नमः देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्‍वेश्‍वरि पाहि विश्‍वं
त्वमीश्‍वरी देवि चराचरस्य ॥11.3!!

ॐ ऐं स्क्लीं नमः  सर्वमङ्‌गलमंङ्‌गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते !! 11.10!!

ॐ ऐं प्रीम नमः   सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥11.11!!

 ॐ ऐं  ग्लौं नमः शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते !!11.12!!

ॐ ऐं  श्रूम नमः  सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥11.24!!

ॐ ऐं  जूं नमः  ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ 11.26!!

ॐ ऐं  हौं नमः  रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥11.29 !!

ॐ ऐं  श्व्रम  नमः  विश्‍वेश्‍वरि त्वं परिपासि विश्‍वं
विश्‍वात्मिका धारयसीति विश्‍वम्।
विश्‍वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्‍वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः॥ 11.33 !!

 ॐ ऐं  सें नमः सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्‍वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥11.39 !!

 ॐ ऐं  सः नमः सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥12.13॥

ॐ ऐं  आं नमः  बालग्रहाभिभूतानां बालानां शान्तिकारकम्।
संघातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुत्तमम् ॥12.18॥

दस महाविद्या

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्च्ये नमः

महाकाली कुल में काली, तारा तथा भुवनेश्वरी आती हैं।

श्री कुल में त्रिपुर सुंदरी, भैरवी, धूमावती, मातंगी, बगलामुखी, कमला, छिन्नमस्ता आती हैं।

(1) आदिशक्ति काली-  भैरव महाकाल हैं जिनका जप दशांस किया जाना चाहिए।लाल रंग के वस्त्र आसन, काली हकीक की माला , समय- रात्रि, दिशा- पूर्व।

मंत्र ‘ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण का‍लिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।

महाविद्या से विद्या, लक्ष्‍मी, राज्य, अष्टसिद्धि, वशीकरण, प्रतियोगिता विजय, युद्ध-चुनाव आदि में विजय, मोक्ष तक प्राप्त होता है।

(2) तारा- शत्रुओं का नाश, ज्ञान तथा जीवन के हर क्षेत्र में सफलता देती है। इनके भैरव अक्षोभ्य हैं। श्वेत वस्त्रासन तथा स्फटिक माला प्रशस्त मानी जाती है।

मंत्र ‘ॐ हूं ऐं  ह्रीं क्रीं स्त्रीं हूं फट् स्वाहा।’ 

(3) षोडशी , भैरव पंचवक्त्र शिव हैं। हर क्षेत्र में सफलता देती है। पूजा-सामग्री, आसन, वस्त्र, नैवेद्य सभी श्वेत,समय ब्रह्म मुहूर्त!

मंत्र  ‘श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क्रीं क ए इ ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।’

(4) भुवनेश्वरी-  भैरव त्र्यम्बक‍ शिव हैं। कीचड़ में कमल की तरह संसार में रहकर भी योगी कहलाता है,भगवान कृष्ण की आराध्या माता भुवनेश्वरी रही हैं जिससे वे ‘योगेश्वर’ कहलाए। । वशीकरण, सम्मोहन, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष देती हैं। पूजन सामग्री रक्त वर्ण की होनी चाहिए।

मंत्र- ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौ: भुवनेश्वर्ये नम: या ह्रीं।’ 

(5) माता छिन्नमस्ता-संतान प्राप्ति, दरिद्रता निवारण, काव्य शक्ति लेखन आदि तथा कुंडलिनी जागरण के लिए भजी जाती हैं।

मंत्र – ‘श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरायनीये हूं हूं फट् स्वाहा।’ 

(6) त्रिपुर भैरवी-  ऐश्वर्य प्राप्ति, रोग-शांति, त्रैलोक्य विजय व आर्थिक उन्नति की बाधाएं दूर करने के लिए पूजी जाती हैं।

मंत्र – ‘ह स: हसकरी हसे।’

(7) धूमावती- ज्येष्ठा लक्ष्मी कहलाती हैं। कर्ज से मुक्ति, दारिद्र्य दूर करने, जमीन-जायदाद के झगड़े निपटाने, उधारी वसूलने के लिए पूजी जाती हैं।शून्यागार या श्मशान में ही साधना की जाती है। श्वेत वस्त्र, तुलसी की माला, दूसरी देवियों की तरह पूजन सामग्री निषेध है। रंगीन वस्तु कोई भी नहीं चढ़ाई जाती है।

मंत्र – ‘धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।’

(8) श्री बगलामुखी- ब्रह्मास्त्र विद्या  हैं। यह युग इनका ही है। रोग-दोष, शत्रु शांति, वाद-विवाद, कोर्ट-कचहरी में विजय, युद्ध-चुनाव विजय, वशीकरण, स्तम्भन तथा धन प्राप्ति के लिए अचूक है।  पीला आसन, वस्त्र, हरिद्रा माला आदि का प्रयोग होता है।

मंत्र- ‘ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिव्हा कीलय, बुद्धिं विनाश्य ह्लीं ॐ फट स्वाहा।’

(9) मातंगी- शीघ्र विवाह, गृहस्थ जीवन सुखी बनाने, वशीकरण, गीत-संगीत में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पूजी जाती हैं।

मंत्र- ‘श्रीं ऐं ह्रीं ऐं क्लीं हूं मातंग्यै हूं फट् स्वाहा।’

(10) कमला- भौतिक साधनों की वृद्धि, व्यापार-व्यवसाय में वृद्धि, धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए पूजी जाती हैं। गुलाबी वस्त्रासन, कमल गट्टे की माला आदि प्रयोग किए जाते हैं।

मंत्र- ‘ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।’

 

गायत्री महामंत्र –

ॐ भूर्भव: स्व:  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।