सं गच्छध्वं सं वद्ध्वं सं वो मनांसि जानताम् । देव भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते ।। ऋग्वेद 10/191/2

जैसे पूर्ववर्ती व्यवहारकुशल ज्ञानीजन पारस्परिक अविरोधपूर्वक कार्य करते आये है, उसी प्रकार हम सब मिलकर चले, समान भाव से बोले, आप सब विद्द्वानो के मन एक समान श्रेष्ठ हो ।