​बाहुबली the conclusion

निर्देशक राजामौली  ने भारतीय संस्कृति इतिहास का गहन अध्ययन व उपयोग कर   फिल्म नहीं, इतिहास बनाया है।
बाहुबली भारतीय सिनेमा की अब तक की सबसे भव्यतम आकर्षक फिल्म हे। तीन घंटे में  300 बार रोंगटे खड़े हो जाएं,   फिल्म देखते समय तीन सेकेण्ड के लिए भी परदे से आँख नही हटा सकते।

गत वर्षो के सबसे चर्चित प्रश्न “कंटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा” का उत्तर देने  आयी फिल्म  प्रारम्भ से ही संस्कृति और चेतना के सजीव केनवास में बांध देती है, रोचकता इतनी कि पल भर के लिए भी परदे से नजर नही हटा पाते। नायक के रणकौशल प्रदर्शन से हमारे स्वर्णिम भारत की अद्भुत युद्धकला व रणनीति का उदाहरण मिलता है,

अनायास ही निकल पड़ता है- वाह ! यही था हमारा महान साम्राज्य स्वर्णिम भारत वर्ष का एक राज्य महिष्मति ।  बाहुबली , ऐसे ही रहे होंगे वीर  विक्रमादित्य , समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अशोक, प्रताप शिवाजी , बाजीराव आदि शूरवीर योद्धा।

धनुष से अनेको बाण चलाते बाहुबली और देवसेना का शौर्य आनंदित कर झूमने पर विवश कर देता है। तक्षक और पुष्यमित्र के सामान अद्भुत योद्धा फिल्म में साक्षात् दृष्टिगत हैं। युद्ध में पेड़ के तने के सहारे,  हवा में उड़ प्रहार कर  अभेद्ध दुर्ग पर विजय प्राप्त करते सैनिकों का कौशल बिल्कुल भी अकल्पनीय और अतार्किक नहीं लगता, उसे देख प्राचीन शास्त्रो में वर्णित अद्भुत युद्धकला पर विश्वास से मन गर्वोन्मत हो जाता है।

भारतीय सिनेमा के परदे पर संस्कृत व शुद्ध हिंदी उच्चारण करते अपने रक्त से महादेव का  रुद्राभिषेक करते योद्धा प्रफुल्लित करते हे, भारतीय सिनेमा में भारत दिखा है।

विश्व सिनेमा में स्त्री सौंदर्य के दर्शाये अनेकों प्रतिमान स्वरुप से भी श्रेष्ठ वीरांगना देवसेना के रूप में अनुष्का को देखिये, स्त्री को सदैव भोग्या व उत्पाद के रूप में दिखाने वाले भारतीय फिल्मोद्योग के छद्म नायक और निर्देशक लज्जित होंगे यह निश्चित है,

यह इतिहास की यह पहली फिल्म है जिसमे आदर्श भारतीय स्त्री अपनी पूरी गरिमा का उत्कृष्ट प्रदर्शन करती है। इसमें प्रेम के दृश्योँ में भी स्त्री पुरुष का खिलौना नही दिखती। यहां  लीला भानंसाली , मांजरेकर, महेश भट्ट और निर्लज्ज खान्स जैसे देह व्यपारियों द्वारा परोसा जाने वाला  सेक्स  नहीं,  शुद्ध  भारतीय निच्छल प्रेम दीखता है।

यह पहली फिल्म है जिसने एक स्त्री की गरिमा के साथ , एक राजकुमारी की गरिमा के साथ न्याय किया है। देवसेना को उसके गौरव और मर्यादा की रक्षा के वचन के साथ महिष्मति ले आता बाहुबली जब पानी में उतर कर अपने कंधों और बाहुओं से रास्ता बनाता है और उसके कंधों पर चल कर देवसेना नाव पर चढ़ती है, तो बाहुबली एक पूर्ण पुरुष लगता है और दर्शक को अपने पुरुष या स्त्री होने पर गर्व होता है।

देवसेना जब पुरे गर्व के साथ महिष्मति की सत्ता से टकराती है तो उसके स्वाभिमान को देख कर प्रचुर गर्व की अनुभूति होती है।

प्रभास के रूप में फिल्मोद्योग को सचमुच महानायक मिल गया लगता है और राजमौली तो भारत के सर्वश्रेष्ठ लेखक निर्देशक फ़िल्मकार स्पस्ट प्रमाणित हो चुके हे।

अनुष्का को उसे यह एक फिल्म ही अबतक की सभी अभिनेत्रियों की शीर्ष पर स्थान दे, रानी बना चुकी है।

कटप्पा और बाहुबली के प्रसंग समाजिक समरसता और  विश्वास के उदाहरण है।

बाहुबली का संगीत भिन्न प्रकार का दिव्यता प्राप्त है, इससे भारतीय स्वर लय और वाद्य यंत्रों में युवाओं की रूचि उत्पन्न होगी । वैसे राजमौली की इस महान फिल्म दुनिया के संगीतकार को नवीन शोध का आधार देगी।

स्पष्ट तौर पर बाहुबली सिर्फ    मनोरंजन ही नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की  महान गौरव गाथा है, जो आपको जीवन का अमूल्य आनंद प्रदान करती है । इसे देखने के लिए अपने आप समय निकल ही जाता है।

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