शुभ अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया  तिथि को कहते हैं।

पौराणिक  ग्रन्थों , मान्यताओं के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।

इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।

वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की तृतीया तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।

अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्त्व है।

मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखण्ड, वाहन आदि की खरीददारी से सम्बन्धित कार्य किए जा सकते हैं।

नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है।

पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है।

इस दिन गंगा या तीर्थ स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।

यह तिथि यदि सोमवार,  रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है।

यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परम्परा भी है।

ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है।

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है।

इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।

भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है,

सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।

भगवान विष्णु का

भगवान नर-नारायण,

भगवान हयग्रीव  और

भगवान परशुराम जी का अवतरण

इसी तिथि को हुआ था।

इस दिन मातंगी देवी की जयंती है,

गंगा जी ने हिमालय की पुत्री के रूप में आविर्भाव किया,

ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था।

इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं।

वृन्दावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।

इस दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।

मदनरत्न के अनुसार:

“अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं।

तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥

उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः।

तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥