कृषको में उधमशीलता विकसित कर ही रोकी जा सकती हे, देश में 5 लाख करोड़ की फल सब्जी उपज की प्रति वर्ष कि राष्ट्रीय हानि

प्याज कि गिरती कीमतों ने फिर चेताया कि कृषको में उधमशीलता विकसित कर ही रोकी जा सकती हे, देश में 5 लाख करोड़ की फल सब्जी उपज की प्रति वर्ष कि राष्ट्रीय हानि.

देश में लगभग 200 मिलियन टन सब्जी तथा 150 मिलिओनं टन फल में से 30 प्रतिशत मूल्य 5 लाख करोड़ का पोस्ट हार्वेस्ट के दौरान परिशमन हो जाता हे, फल सब्जी का क्षेत्र 30 मिलियन हेक्टेयर और उत्पादन 350 मिलियन टन से अधिक हो गया हे, अब भारत विश्व का सबसे बड़ा फल सब्जी मसाले और दुग्ध उत्पादक देश हो गया हे।
कृषि विपणन की हानियों के सम्बन्ध में हुए कई अध्ययनों ने बताया कि पेरिशेबल उपज की स्वयं की प्रकृति, मौसम, गर्मी, नमी के अभाव, हैंडलिंग लापरवाहियों, से उपज हर स्तर पर नष्ट होती रहती हे, शीघ्र परिशमन योग्य उपज की हानीयो को कम करने के लिए उपयुक्त कल्चर ऑपरेशन, आधुनिक हार्वेस्टिंग, पोस्ट हार्वेस्ट ट्रीटमेंट, वैज्ञानिक पैकेजिंग, कोल्ड चेन परिवहन, विशेष प्रकार के आईएसआई मानदंड के स्टोरेज, तथा नजदीकतम स्थान पर प्रसंस्करण संयत्र और बेहतर विपणन व्यवस्था होना आवश्यक हे।
हालांकि इन सभी में अतिरिक्त लागत होगी , किन्तु वह हो रही हानी की , चोथाई भी नहीं होगी। देश में 30 मिलियन टन के कोल्ड चेन हे जो फल सब्जी की उत्पादन मात्रा का मात्र 10 प्रतिशत हे। कृषि विपणन उसमे भी पेरिशेबल कमोडिटी यानी शीघ्र शमन योग्य जिंस का विपणन, वैज्ञानिक भण्डारण की अनुपलब्धता की बजह से और अधिक जोखिम पूर्ण हो जाता हे,
उदाहरण के तौर पर उत्पादन की भारी अनिश्चितता जेसे गत वर्ष 35 लाख किवंटल के स्थान पर 70 लाख किवंटल प्याज होना, गत वर्ष 10से 20 रू से मूल्य 2से6 हो गया,सामान्य भंडारगृह की पूर्ण क्षमता का मात्र सात से दस प्रतिशत तक ही प्याज हेतु उपयोग हो सकता हे उसमे भी इसकी प्रति घंटे के मान से अदलाबदली और छटाई अनिवार्य होती हे , जिसके चूकने पर समस्त प्याज सड़ने से भारी हानी का जोखिम होता हे।
अधिकतम उत्पादन क्रय करने की राज्य की मंशा सभी मान रहे हे कि हलके छोटे औसत से कम गुणवत्ता के भी प्रतिस्पर्धात्मक बाजार दर @6 किसान हित में एग्रेसिव और बोल्ड निर्णय हे, उद्यानिकी उपजो के लिए उत्पादक स्तर के समीप प्रसंस्करण की दूरगामी नीति की उद्धोषणा भी की गयी हे, स्मूथ खरीदी की राह में परिवहन भण्डारण की चुनोती का हल हुआ है ,
हानि कृषक को ही भुगतना पड़ती    हे। नियमित उपार्जन अभियान कृषको में विश्वास पैदा करने में अवश्य सफल  है।
अतः सक्षम कृषक द्वारा स्वयं या एक जेसे विचार वाले अन्य समर्थ कृषको का व्यापार संघ अथवा कम्पनी निर्मित कर श्रेष्ठ एक् जेसे आदान और उत्पादन के सामूहिक विधि , तरीके अपनाकर लागत में कमी कर, अच्छी किस्म कि उपज प्राप्त कि जा सकती हे, कोल्ड चैन के साथ ही प्रसंस्करण में निवेश से न केवल वेल्युएडेड पैकेज्ड उत्पाद वितरण नियंत्रण कर , बाजार में प्रभावी हस्तक्षेप कर अच्छी कीमत पायी जा सकती हे बल्कि कालान्तर में इससे कृषि उपज कि गुणवत्ता के साथ मानकीकरण भी विकसित हो सकेगा , उपभोक्ता को ग्रेडेड कमोडिटी उचित मूल्य पर सीधे प्राप्त हो सकेगी।
5 लाख करोड़ प्रतिवर्ष की आधी हानि भी यदि रोकी जा सके तो कृषक को पूरी उपज का लागत मूल्य मिलेगा और उपभोक्ता को सही प्रतिस्पर्धात्मक कीमत, इसके अतिरिक्त ग्रामीण भारत के नजदीक रोजगार के उपक्रम , व्यावसायिक आर्थिक तौर पर उद्यम विकास कर, क्षेत्र् को स्वाबलंबी कर, वास्तविक लाभान्वित होंगे।