लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती आचार्य सोहन लाल द्विवेदी

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती आचार्य सोहन लाल द्विवेदी

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

पं. सोहनलाल द्विवेदी स्वतंत्रता आंदोलन युग के एक ऐसे विराट कवि थे, जिन्होंने जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृति करने, उनमें देश-भक्ति की भावना भरने और नवयुवकों को देश के लिए बड़े से बड़े बलिदान के लिए प्रेरित करने में अपनी सारी शक्ति लगा दी।