शुभ 69 वा स्वतन्त्रता दिवस “चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ! मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक ” वन्दे मातरम् !
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योग एक आध्यात्मिक प्रकिया
मंत्रयोगों हष्ष्चैव लययोग स्तृतीयकः, चतुर्थो राजयोगः (शिवसंहिता) योग एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम योग होता है ! महर्षि पंतजलि ने योगदर्शन में कहा ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’, योग शब्द ‘युज समाधौ’ आत्मनेपदी दिवादिगणीय धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय लगाने से निष्पन्न होता है। स्वामी विवेकानंद इस सूत्र को अनुवाद करते हुए कहते है,”योग बुद्धि (चित्त) को विभिन्न रूपों (वृत्ति) लेने से अवरुद्ध करता है, भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ कर्मो में कुशलता को योग कहते हैं। अष्टांग योग” हे यम (पांच “परिहार”): अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति….
Read moreवृक्ष, ब्रम्हांड की विषाक्तता हरने वाले “नीलकंठ महादेव”
वृक्ष, ब्रम्हांड की विषाक्तता हरने वाले “नीलकंठ महादेव” भारतीय संस्कृति में वृक्षारोपण का विशिष्ट स्थान है। कोई भी ऐसा वृक्ष नहीं जिसका उपयोग आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित न हो। वृक्ष जीव-मात्र के उपकारी हैं और सर्वपूज्य भी हैं। सनातन भारतीय संस्कृति की सर्व प्रथम पुस्तक ऋग्वेद है, जिसमें किसी भी मंगल-कृत्य के समय वृक्ष के कोमल पत्तों का स्मरण किया गया है, ऋचा इस प्रकार है-‘काण्डात् काण्डात् प्ररोहन्ती परूषः परूषस्परि’ (यजुर्वेद 13/20)। इसी प्रकरण में ईश्वर की महिमा भी कही गई है-‘अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता’ (ऋग्वेद 10/97/5)। ऋगवेद में प्रजा के कल्याण के लिए वनस्पति मात्र की स्तुति….
Read moreजय श्री माँ हरसिद्धि देवी हो सदा प्रसन्न!
जय श्री माँ हरसिद्धि देवी हो सदा प्रसन्न! ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे !! नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥१॥ या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥२॥ या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥३॥ या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥४॥ या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥५॥ या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥६॥ या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो….
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